Saturday, November 27, 2010

Vedic Prayers for English Speaking Children

This is first "Prayer Blog" for English speaking children.
I'll start Vedic Prayers with the 'Gayatri Mantra', the most popular Vedic Mantra, with easily understandable meaning in simple words. Viewers are requested to make their school going children to learn from this blog ... Madan Raheja.


Gayatri Mantra:

OM! Bhur Bhuvah Swaha.
Tatsa Vitur Vare Nyam
 Bhargo Devasya Dhee Mahi.
Dhiyo Yo Nah Pracho Dayat.

Meaning: O God! You are the greatest. We are your children. We remember you. Make us wise so that we live happily in this world. May all be happy!

Tuesday, November 9, 2010

मूर्ति पूजा का सही अर्थ .....Madan Raheja

प्राय: लोग पूजा का अर्थ नहीं जानते क्‍यों कि वे ऐसा समझते हैं कि किसी भी देवी-देवता की काल्‍पनिक मूर्ति के सामने  हाथ जोड़ने से ईश्‍वर की पूजा पूर्ण हो जाती है। वास्‍तव में ऐसा करने से कोई लाभ नहीं होता। हमें सब से पहले मूर्ति-पूजा का सही अर्थ समझना होगा। मिट्टी या पत्‍थर की बनी  मूर्ति वास्‍तव में निराकार परमात्‍मा की मूर्ति नहीं होती क्‍यों कि ईश्‍वर निराकार है, आँखों से दिखाई देने वाली वस्‍तु नहीं है। पूजा का अर्थ होता है - आज्ञा का पालन करना, आदर-सत्‍कार करना, अपने कर्तव्‍यों का ठीक-ठीक पालन करना इत्‍यादि। पत्‍थ्‍र न तो सुन सकते हैं, न ही बोल सकते हें, न खाते हैं और न ही पी सकते हैं क्‍यों कि पत्‍थर की मूर्ति जड़ होती है।  जीवित माता-पिता, बड़े-बुज़ुर्ग, विद्वान गुरु इत्‍यादि साकार मूर्तिमान देवता होते हैं, आप की बातें सुन सकते हैं, आपको सलाह दे सकते हैं, शिक्षा प्रदान कर सकते हैं अत: उनकी आज्ञाओं का पालन करना उनकी पूजा कहाती है। ईश्‍वर की पूजा का अर्थ होता है परमात्‍मा के गुणों को तथा ईश्‍वरीय वाणी "वेद" में कही बातों को अपने जीवन में धारण करना, आज्ञाओं का पालन करना। यदि हम ऐसा करते हैं तो हमें किसी पत्‍थर के समक्ष हाथ जोड़ने या फूल चढ़ाने या दीपक जलाने की कोई आवश्‍यकता नहीं है। निाराकार परमात्‍मा के स्‍थान पर जड़ वस्‍तु की पूजा करना ईश्‍वर का अपमान है, उसका निरादर करना है। 
हम मनुष्‍य सर्वश्रेष्ठ प्राणी कहाए जाते हैं। ईश्‍वर ने हमें बुद्धि प्रदान की है। सोचें, विचारें, चिन्‍तन करें। अपने जीवित माता-पिता तथा परमात्‍मा की आज्ञाओं का पालन करें - यही पूजा है। ईश्‍वर सब को सद्बुद्धि प्रदान करें। 
मेरी आगामी पुस्‍तक 'मूर्तिपूजा या ईश्‍वरोपासना' 2012 में प्रकाशित होने वाली है,उसे अवश्‍य पढ़ें। मदन रहेजा

Eternal Trinities

त्रिशब्‍द अटूट सम्‍बन्‍ध

अनादि तत्त्‍व = ईश्‍वर, जीव और प्रकृति।
प्राकृतिक मूल गुण = सत्‍व, रजस् और तमस्।
जगत के कारण = निमित्त, उपादान और साधारण।
"ओ३म्" के अक्षर = अ, ऊ  और म्।
वैदिक महाव्‍याहृतियाँ = भूः, भुवः और स्‍वः।
ईश्‍वर के गुण = सर्वव्‍यापक, सर्वज्ञ और सर्वशक्तिमान।
ईश्‍वर के कर्म = सृष्टिकर्त्ता, ज्ञानप्रदाता और कर्मफलदाता।
ईश्‍वर के स्‍वभाव = सत्‍य, चेतन और आनन्‍दस्‍वरूप।
जीवात्‍मा के गुण = एकदेशी, अल्‍पज्ञ और अल्‍पसामर्थ्‍यवान। (मनुष्‍य जाति)   
जीवात्‍मा के कर्म = भोग, योग और मोक्षप्राप्ति का प्रयत्‍न। (मनुष्‍य जाति)     
जीवात्‍मा के स्‍वभाव = सत्‍य, चेतन और कर्मशील। (मनुष्‍य जाति)    
प्रभु मिलन के साधन = ज्ञान, कर्म और उपासना।
जीवन के परम-सत्‍य = जन्‍म, जीवन और मृत्‍यु।
साधना के साधन = ज्ञान, भक्ति और वैराग्‍य।
सफलता के शत्रु = स्‍वार्थ, आलस्‍य और अहंकार।
कर्म के साधन = मन, वचन और कर्म।
कर्म के भेद = शुभ, मिश्रित और अशुभ।
कर्म के रूप = अकाम, सकाम और निष्‍काम।
कर्मफल की प्राप्ति = जाति, आयु और भोग।
कर्मफल के प्रकार = फल, प्रभाव और परिणाम।
त्रिविध दुःख = आध्‍यात्मिक, आधिभौतिक और आधिदैविक।
वस्‍तु के रूप = स्‍थूल, सूक्ष्‍म और सूक्ष्‍मतम।
तीन शरीर = स्‍थूल, सूक्ष्‍म और कारण।
तीन अवस्‍थाएँ = जागृत, स्‍वप्‍न, सुषुप्ति।
काल की स्थिति = भूत, वर्तमान और भविष्‍य।
जीवन की स्थितियाँ = बचपन, यौवन और बुढापा।
लोक परिस्थियाँ = स्‍वर्ग, नरक और वैराग्‍य।
लड़ाई-झगड़े के कारण = धन, स्‍त्री और भूमि।
वाद-विवाद के कारण = अज्ञानता, अहंकार और निर्बलता। 
तीन लिंग = स्‍त्रीलिंग, पुर्लिंग और नपुंसकलिंग।
मानव व्‍यवहार = आत्‍मवत्, सदाचार और मधुर=भाषण।
मानव कर्तव्‍य = सेवा, सत्‍संग और स्‍वाध्‍याय।
आर्य की परिभाषा = धर्माचारी, सेवाधारी और निर्हंकारी।
मनुष्‍य की पहचान = संस्‍कार, संस्‍कृति और मानवता।
आर्य की पहचान = धर्म, कर्म और आचरण।
मित्र की पहचान = आत्‍मवत् व्‍यवहारी, विघ्‍न निवारक और निःस्‍वार्थी।
शत्रु की पहचान = अत्‍यन्‍त मधुरभाषी, अवसरवादी और अत्‍यन्‍त स्‍वार्थी। 
गुरु की पहचान = मार्गदर्शक, धार्मिक और निःस्‍वार्थी।
संन्‍यासी की पहचान = प्राणायाम, प्रवचन और परोपकार।
धार्मिक की पहचान = धर्मनिष्‍ट, परोपकारी और सर्वहितैषी।  
मनुष्‍य का गुरु = ईश्‍वर, वेद और धर्मनिष्‍ठ माता=पिता=आचार्य।
स्‍वस्‍थ जीवन रहस्‍य = शुद्धाहार, शुद्धविहार और शुद्धव्‍यवहार।
घर का अर्थ = माता, पिता और संतान।
परिवार की परिभाषा = माता=पिता, पुत्र=पुत्रवधु और संस्‍कारी संतानें।
मूर्तिमान देवता = पितर (जीवित माता, पिता), गुरु (शिक्षक, आचार्य एवं आध्‍यात्मिक मार्गदर्शक तथा पति के लिये धर्मपत्‍नी एवं पत्‍नी के लिये पति) और अतिथिगण।
यज्ञ की परिभाषा = देव-पूजा, संगति-करण और दान।
यज्ञ की भावना = त्‍याग, परोपकार, और सेवा।
यज्ञ की सार्थकता = शुद्धता, समर्पण और वैदिक-विधि।
स्‍वाध्‍याय सामग्री = वेद, आप्‍त-पुरुष व्‍यवहार और स्‍व-अध्‍याय।
स्‍वाध्‍याय प्रक्रिया = पठन-पाठन, श्रवण-प्रवचन और सदाचरण।
सत्‍संग के पात्र = सदाचारी, धर्माचारी और धार्मिक विद्वान।
जप की विधि = नाम-स्‍मरण, अर्थ-चिन्‍तन और आचरण।
धर्म की विधि = सत्‍य, अहिन्‍सा और प्रेम।
श्राद्ध की विधि = सत्‍याचरण, पितर-सम्‍मान और समर्पण।
प्रेम की विधि = त्‍याग, समर्पण और निरभिमानता।
पूजा की विधि = सदुपयोग, मन-वचन-कर्म से सेवा और आज्ञा-पालन।
ध्‍यान की विधि = मौनावस्‍था, अर्थसहित प्रभु-नाम स्‍मरण और निरन्‍तराभ्‍यास।
समाधि की विधि = निर्विषयं मनः, निर्विषयं मनः और निर्विषयं मनः।
योग की उपलब्धि = प्रेम, समानता और आनन्‍द।



Eternal Trinities


 
त्रिशब्‍द अटूट सम्‍बन्‍ध

अनादि तत्त्‍व = ईश्‍वर, जीव और प्रकृति।
प्राकृतिक मूल गुण = सत्‍व, रजस् और तमस्।
जगत के कारण = निमित्त, उपादान और साधारण।
"ओ३म्" के अक्षर = अ, ऊ  और म्।
वैदिक महाव्‍याहृतियाँ = भूः, भुवः और स्‍वः।
ईश्‍वर के गुण = सर्वव्‍यापक, सर्वज्ञ और सर्वशक्तिमान।
ईश्‍वर के कर्म = सृष्टिकर्त्ता, ज्ञानप्रदाता और कर्मफलदाता।
ईश्‍वर के स्‍वभाव = सत्‍य, चेतन और आनन्‍दस्‍वरूप।
जीवात्‍मा के गुण = एकदेशी, अल्‍पज्ञ और अल्‍पसामर्थ्‍यवान। (मनुष्‍य जाति)   
जीवात्‍मा के कर्म = भोग, योग और मोक्षप्राप्ति का प्रयत्‍न। (मनुष्‍य जाति)     
जीवात्‍मा के स्‍वभाव = सत्‍य, चेतन और कर्मशील। (मनुष्‍य जाति)    
प्रभु मिलन के साधन = ज्ञान, कर्म और उपासना।
जीवन के परम-सत्‍य = जन्‍म, जीवन और मृत्‍यु।
साधना के साधन = ज्ञान, भक्ति और वैराग्‍य।
सफलता के शत्रु = स्‍वार्थ, आलस्‍य और अहंकार।
कर्म के साधन = मन, वचन और कर्म।
कर्म के भेद = शुभ, मिश्रित और अशुभ।
कर्म के रूप = अकाम, सकाम और निष्‍काम।
कर्मफल की प्राप्ति = जाति, आयु और भोग।
कर्मफल के प्रकार = फल, प्रभाव और परिणाम।
त्रिविध दुःख = आध्‍यात्मिक, आधिभौतिक और आधिदैविक।
वस्‍तु के रूप = स्‍थूल, सूक्ष्‍म और सूक्ष्‍मतम।
तीन शरीर = स्‍थूल, सूक्ष्‍म और कारण।
तीन अवस्‍थाएँ = जागृत, स्‍वप्‍न, सुषुप्ति।
काल की स्थिति = भूत, वर्तमान और भविष्‍य।
जीवन की स्थितियाँ = बचपन, यौवन और बुढापा।
लोक परिस्थियाँ = स्‍वर्ग, नरक और वैराग्‍य।
लड़ाई-झगड़े के कारण = धन, स्‍त्री और भूमि।
वाद-विवाद के कारण = अज्ञानता, अहंकार और निर्बलता। 
तीन लिंग = स्‍त्रीलिंग, पुर्लिंग और नपुंसकलिंग।
मानव व्‍यवहार = आत्‍मवत्, सदाचार और मधुर=भाषण।
मानव कर्तव्‍य = सेवा, सत्‍संग और स्‍वाध्‍याय।
आर्य की परिभाषा = धर्माचारी, सेवाधारी और निर्हंकारी।
मनुष्‍य की पहचान = संस्‍कार, संस्‍कृति और मानवता।
आर्य की पहचान = धर्म, कर्म और आचरण।
मित्र की पहचान = आत्‍मवत् व्‍यवहारी, विघ्‍न निवारक और निःस्‍वार्थी।
शत्रु की पहचान = अत्‍यन्‍त मधुरभाषी, अवसरवादी और अत्‍यन्‍त स्‍वार्थी। 
गुरु की पहचान = मार्गदर्शक, धार्मिक और निःस्‍वार्थी।
संन्‍यासी की पहचान = प्राणायाम, प्रवचन और परोपकार।
धार्मिक की पहचान = धर्मनिष्‍ट, परोपकारी और सर्वहितैषी।  
मनुष्‍य का गुरु = ईश्‍वर, वेद और धर्मनिष्‍ठ माता=पिता=आचार्य।
स्‍वस्‍थ जीवन रहस्‍य = शुद्धाहार, शुद्धविहार और शुद्धव्‍यवहार।
घर का अर्थ = माता, पिता और संतान।
परिवार की परिभाषा = माता=पिता, पुत्र=पुत्रवधु और संस्‍कारी संतानें।
मूर्तिमान देवता = पितर (जीवित माता, पिता), गुरु (शिक्षक, आचार्य एवं आध्‍यात्मिक मार्गदर्शक तथा पति के लिये धर्मपत्‍नी एवं पत्‍नी के लिये पति) और अतिथिगण।
यज्ञ की परिभाषा = देव-पूजा, संगति-करण और दान।
यज्ञ की भावना = त्‍याग, परोपकार, और सेवा।
यज्ञ की सार्थकता = शुद्धता, समर्पण और वैदिक-विधि।
स्‍वाध्‍याय सामग्री = वेद, आप्‍त-पुरुष व्‍यवहार और स्‍व-अध्‍याय।
स्‍वाध्‍याय प्रक्रिया = पठन-पाठन, श्रवण-प्रवचन और सदाचरण।
सत्‍संग के पात्र = सदाचारी, धर्माचारी और धार्मिक विद्वान।
जप की विधि = नाम-स्‍मरण, अर्थ-चिन्‍तन और आचरण।
धर्म की विधि = सत्‍य, अहिन्‍सा और प्रेम।
श्राद्ध की विधि = सत्‍याचरण, पितर-सम्‍मान और समर्पण।
प्रेम की विधि = त्‍याग, समर्पण और निरभिमानता।
पूजा की विधि = सदुपयोग, मन-वचन-कर्म से सेवा और आज्ञा-पालन।
ध्‍यान की विधि = मौनावस्‍था, अर्थसहित प्रभु-नाम स्‍मरण और निरन्‍तराभ्‍यास।
समाधि की विधि = निर्विषयं मनः, निर्विषयं मनः और निर्विषयं मनः।
योग की उपलब्धि = प्रेम, समानता और आनन्‍द।