tag:blogger.com,1999:blog-6571589.post1367037812648614366..comments2023-02-28T00:45:51.030-08:00Comments on Vedic Dharma वैदिक धर्म: पाखण्ड खिण्डनी पताकाMadan Rahejahttp://www.blogger.com/profile/14738560080832363616noreply@blogger.comBlogger1125tag:blogger.com,1999:blog-6571589.post-9723550645356821082012-06-18T04:18:30.232-07:002012-06-18T04:18:30.232-07:00धर्म का अर्थ - सत्य, न्याय एवं नीति (सदाचरण) को धा...धर्म का अर्थ - सत्य, न्याय एवं नीति (सदाचरण) को धारण करके कर्म करना एवं इनकी स्थापना करना ।<br />व्यक्तिगत धर्म- सत्य, न्याय एवं नीति को धारण करके, उत्तम कर्म करना व्यक्तिगत धर्म है ।<br />असत्य, अन्याय एवं अनीति को धारण करके, कर्म करना अधर्म होता है ।<br />सामाजिक धर्म- मानव समाज में सत्य, न्याय एवं नैतिकता की स्थापना के लिए कर्म करना, सामाजिक धर्म है । ईश्वर या स्थिरबुद्धि मनुष्य सामाजिक धर्म को पूर्ण रूप से निभाते है । लोकतंत्र में न्यायपालिका भी यही कार्य करती है ।<br />धर्म को अपनाया नहीं जाता, धर्म का पालन किया जाता है । धर्म पालन में धैर्य, संयम, विवेक जैसे गुण आवश्यक है ।<br />धर्म संकट- सत्य और न्याय में विरोधाभास की स्थिति को धर्मसंकट कहा जाता है । उस स्थिति में मानव कल्याण व मानवीय मूल्यों की दृष्टि से सत्य और न्याय में से जो उत्तम हो, उसे चुना जाता है ।<br />व्यक्ति विशेष के कत्र्तव्य पालन की दृष्टि से धर्म -<br />राजधर्म, राष्ट्रधर्म, मनुष्यधर्म, पितृधर्म, पुत्रधर्म, मातृधर्म, पुत्रीधर्म, भ्राताधर्म इत्यादि ।<br />जीवन सनातन है परमात्मा शिव से लेकर इस क्षण तक व अनन्त काल तक रहेगा ।<br />धर्म एवं मोक्ष (ईश्वर की उपासना, दान, पुण्य, यज्ञ) एक दूसरे पर आश्रित, परन्तु अलग-अलग विषय है । <br />धार्मिक ज्ञान अनन्त है एवं श्रीमद् भगवद् गीता ज्ञान का सार है ।<br />राजतंत्र में धर्म का पालन राजतांत्रिक मूल्यों से, लोकतंत्र में धर्म का पालन लोकतांत्रिक मूल्यों से होता है । by- kpopsbjriAnonymousnoreply@blogger.com