जैसे आप समजते हैं वैसे नहीं अपितु यहां दर्शन का अर्थ है उसकी अनुभूति करना।
The Sanskrit word 'Veda' means 'Knowledge. All human-beings are born ignorant by nature hence they need proper knowledge and guidance for proper living in this world. There are four Vedas namely Rigveda, Yajurveda, Samaveda and Arharvaveda revealed by Omnipresent, Omniscient, Omnipotent GOD in the beginning of the creation for benefit and upliftment of all mankind. One must read and follow the teachings of the Vedas. For more info. visit 'Arya Samaj'. Email: madanraheja@rahejas.org
Wednesday, July 23, 2014
Vedic Dharma वैदिक धर्म: क्या ईश्वर के दर्शन होते हैं?
जैसे आप समजते हैं वैसे नहीं अपितु यहां दर्शन का अर्थ है उसकी अनुभूति करना।
Tuesday, July 22, 2014
क्या ईश्वर के दर्शन होते हैं?
प्रश्न: क्या ईश्वर के दर्शन होते हैं?
उत्तर : अवश्य होते हैं पर वैसे नहीं जैसे आप इस समय सोच रहे हैं !
* ईश्वर स्वभाव से चेतन है और चेतन तत्त्व निराकार होता है इसलिए ईश्वर का दीदार, देखना या दर्शन करने का तात्पर्य होता है - उसकी सत्ता का ज्ञान होना, उसकी अनुभूति (feeling) होना! इसी feeling को दार्शनिक भाषा में 'ईश्वर साक्षात्कार' कहते हैं।
* "दृश्यन्ते ज्ञायन्ते याथातथ्यत आत्मपरमात्मनो बुद्धिन्द्रियादयोतिन्द्रियाः सूक्ष्मविषया येन तद दर्शनम् "||
अर्थात् जिससे आत्मा, परमात्मा, मन, बुद्धि, इन्द्रियों आदि सूक्ष्म विषयों का प्रत्यक्ष = ज्ञान होता है, उसको दर्शन कहते हैं। इसलिए कहते हैं कि ईश्वर को देखने के लिए ज्ञान-चक्षुओं की आवश्यकता होती है, चरम-चक्षुओं (भौतिक नेत्रों) की नहीं!।
* पदार्थ दो प्रकार के होते हैं - 1) जड़ और 2) चेतन। जड़ वास्तु ज्ञानरहित होती है और चेतन में ज्ञान होता है। प्रकृति तथा उससे बनी सृष्टि की प्रत्येक वास्तु जड़ होती है। परमात्मा और आत्मा दोनों चेतन हैं।
* चेतन (आत्मा) को ही चेतन (परमात्मा) की अनुभूति होती है। चेतनता अर्थात् ज्ञान।
* हमारे नेत्र जड़ होते है, देखने के साधन हैं और जो उनके द्वारा वस्तुओं को देखता है वह चेतन (जीवात्मा) होता है। जह वस्तुचेतन को नहीं देख सकती क्योंकि उसमें ज्ञान नहीं होता पर चेतन वास्तु (आत्मा और परमात्मा) जड़ और चेतन दोनों को देख सकती है।
* अतः ईश्वर का साक्षात्कार आत्मा ही कर सकता है शर्त यह है कि आत्मा और परमात्मा के बीच किसी भी प्रकार का मल, आवरण या विक्षेप न हो अर्थात् वह शुद्ध, पवित्र और निर्मल हो अर्थात् वह सुपात्र हो।
* ईश्वर की कृपा का पात्र (सुपात्र) बनाने के लिए मनुष्य को चाहिए कि वह अपने अमूल्य जीवान को वैदिक नियमों तथा आज्ञाओं के अनुसार बनाए, नियमित योगाभ्यास करे और अष्टांग योग के अनुसार समध्यावस्था को प्राप्त करे। समाध्यावास्था में ही ईश्वर के साक्षात्कार हो सकते हैं, अन्य कोई मार्ग नहीं है।
* इस स्थिति तक पहूँचने के लिए साधक को चाहिए कि वह सत्य का पालन करे और किसी भी परिस्थिति में असत्य का साथ न दे। जब तक जीवन में सत्य का आचरण नहीं होगा ईश्वर की प्राप्ति या उसके आनन्द का अनुभव (feeling) नामुमकिन है जिस की सब को सदा से तलाश रहती है।.......Madan Raheja
Saturday, July 5, 2014
मेरे कुछ अनसुलझे प्रश्न
कर्म बड़ा या मूर्ती पूजा?
क्या कोई निकम्मा व्यक्ति मूर्तिपूजा करे और उसकी मनोकामना पूरी होगी?
एक महेनती व्यक्ति मेहनत करके रोज़ी-रोटी कमाता है। दोनों में कौन अच्छा?
मेरे प्रश्न :
1) क्या शिर्डी के एक फ़कीर को जिस का नाम 'साईंबाबा' रखा गया है उसे भगवान् का दर्जा दिया जा सकता है?
2) क्या अयोध्या के राजा श्री रामचन्द्र भगवान् और द्वारिका के राजा श्री कृष्णचन्द्र भगवान् की मंदिरों में स्थापित मूर्तियों के पास में साईंबाबा की मूर्ती का रखा जाना उचित है?
3) क्या साईं बाबा की तुलना भगवान् से हो सकती है? यदि हाँ तो क्यों और कैसे? यदि नहीं तो आजकल ये अनर्थ कैसे?
4) शंकराचार्य का बयान कि 'साईंबाबा भगवान् नहीं है' कहाँ तक सही या ग़लत है?
5) साईं बाबा धार्मिक व्यक्ति थे या अधार्मिक और कैसे?
6) 'ऐश्वर्यस्य वीरस्य यशस्य श्रियः। ज्ञान वैराग्य्योश्चैव षष्णां भग इतीरणा'।।(विष्णु पुराण 6/5/74) के अनुसार जिस व्यक्ति में ऐश्वर्य, बल, यश, श्री (धन, सम्पदा), ज्ञान और वैराग्य - ये छः गुण विद्यमान होते हैं उनको 'भगवान्' की उपाधि से सुशोभित किया जाता है।
श्री राम और श्री कृष्ण जैसे महापुरुषों को तो भगवान् कह सकते हैं परन्तु एक फ़कीर (भिखारी) को भगवान् कहना भगवान् शब्द का अपमान करना है।
7) जो व्यक्ति माँसाहारी था तथा ...... और मस्जिद में रहता था उस व्यक्ति की तस्वीर को मंदिर में रखना और उसकी भगवान् की तरह पूजा करना कहाँ तक सही है? यह अज्ञानता की पराकाष्ठा नहीं है?
8) जिस व्यक्ति के मुँह से कभी 'राम' नहीं निकला उस व्यक्ति के नाम के साथ 'राम' का नाम जोड़ना (साईं राम) कहाँ की बुद्धिमात्ता है?
9) लोग निराकार ईश्वर के स्थान पर गढ़े मुर्दों/ मज़ारों/क़ब्रों की पूजा करते हैं अधार्मिक कार्य करते हैं। ये सब क्या हो रहा है?
10) कोई पंडित, आचार्य, गुरु, सद्गुरु, शंकराचार्य, साधू, संत, मौलाना, पादरी, ब्राह्मण या विद्वान् आदि धर्म के ठेकेदार हमें सही मर्ग्क्यों नहीं दिखाता? आपका अपना
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