धर्म के प्रकार :
* धर्म की परिभाषा अनेक प्रकार से होती है। मनुष्य मात्र के लिए धर्म एक होता है जिसका नाम है - मानवता! 'धारयति इति धर्म' अर्थात् 'जो धारण किया जाता है'। जो-जो गुण, कर्म और स्वभाव मनुष्य को मनुष्य बनाने के लिए उचित होते हैं' उनको धारण करने को धर्म की संज्ञा दी गयी है।
** अलग-अलग वस्तुओं तथा जीवों (शरीर धारियों) के लिए धर्म की परिभाषा बदल सकती है। जैसे गर्मी को अग्नि से धारण किया जाता है तो गर्मी अग्नि का धर्म है। उसी प्रकार जल का धर्म है - तरलता, कोमलता, शीतलता आदि देना। बिच्छू, सांप, ज़हरीले जीव काटते हैं, गाय घास खाकर भी दूध देती है, शेर शिकार करके माँस खाता है, वृक्ष फल-फूल देते हैं, लकड़ी जलकर कोयला बनती है....आदि। प्रत्येक धातु के अलग-अलग गुण, कर्म स्वभाव होते हैं अतः वे सब उन के धर्म कहाते हैं।
*** ईश्वर, जीव और प्रकृति के भी धर्म अलग-अलग होते हैं।
**** प्रत्येक वास्तु अपने-अपने गुण, कर्म और स्वभाव के कारण ही जानी जाती है।
***** ईश्वर सच्चिदानन्दस्वरूप है, जीव सत्य और चेतन है तथा प्रकृति सत्य है। ये उनके धर्म हैं।
****** सबका धर्म एक है - ऐसा कहना ठीक नही है। सब मनुष्यों का धर्म एक है - ऐसा कहना ठीक है।
Vedic Dharma वैदिक धर्म
The Sanskrit word 'Veda' means 'Knowledge. All human-beings are born ignorant by nature hence they need proper knowledge and guidance for proper living in this world. There are four Vedas namely Rigveda, Yajurveda, Samaveda and Arharvaveda revealed by Omnipresent, Omniscient, Omnipotent GOD in the beginning of the creation for benefit and upliftment of all mankind. One must read and follow the teachings of the Vedas. For more info. visit 'Arya Samaj'. Email: madanraheja@rahejas.org
Wednesday, August 6, 2014
धर्म के प्रकार
अन्त्येष्टि संस्कार
जिज्ञासा : मृत शरीर का अन्तिम संस्कार श्मशान में पुरानी विधि-विधान से अग्नि में करना चाहिए या आधुनिक बिजली-भट्टी में करना चाहिए?
समाधान : आर्ष ग्रन्थों के आधार पर मृत शरीर का अन्तिम संस्कार (दाह संस्कार) श्मशान भूमि में अग्नि में होना चाहिए।
ज़माना बदल रहा है। नई तकनीक और सुविधाएँ उपलब्ध हो रही हैं। श्मशान में आधुनिक बिजली की भट्टियाँ जोड़ी गयी हैं ताकि थोड़े समय में शरीर का दाह संस्कार सम्पन्न हो सके। अब देखना है कि दोनों विधियों में कौन सी विधि बेहत्तर है?
1) पहली विधि में लकड़ियाँ, सामग्री, शुद्ध घी तथा अन्य सुगन्धित पदार्थों की आवश्यकता पड़ती है तथा अन्त्येष्टि संस्कार में बहुत अधिक समय लगता है। लगभग दो घण्टे लगते हैं।
2) आधुनिक बिजली-भट्टी की विधि में न लकड़ियों की आवश्यकता नहीं पड़ती और न ही अन्य वस्तुओं की। समय की दृष्टि से भी समय की बहुत बचत होती है। आधे घण्टे के भीतर ही क्रिया-कर्म सम्पन्न हो जाता है।
अन्त्येष्टि का मुख्य काम है - पार्थिव शरीर को भस्म करना अर्थात् वह वायु मण्डल को दूषित किये बिना अग्नि में जलकर पञ्च महाभूतों में पूरी तरह से विलीन हो जाए।
अब विचारणीय बात है कि मृत्यु को प्राप्त पाषण शरीर Electric Furnace में जले या लकड़ी में भस्म हो जाए, दोनों में शरीर को कोई फ़र्क नहीं पड़ता परन्तु सामाजिक तथा धार्मिक दृष्टि से सोचें तो दोनों विधियों में परिवार के कुछ सदस्यों को आपत्ति हो सकती है।
मैंने दोनों विधियाँ देखी हैं। उनमें मैंने एक अन्तर देखा है।
1 - वैदिक अन्त्येष्टि विधि में पंडितों द्वारा लगभग 101 मन्त्रों के उच्चारण से दाह संस्कार सम्पन्न होता है और शरीर को भस्म होने में काफ़ी समय लगता है। परिवार-जनों को अस्थियाँ दूसरे दिन ही मिलती हैं।
2 - वहीं दूसरी आधुनिक electric श्मशान में पौराणिक विधि से कुछ मन्त्रों के साथ पाँच-आठ मिनिटों में ही सब क्रिया-कर्म समाप्त होता है और आधे घण्टे के भीतर ही शरीर पूर्णरूपेण भस्म हो जाता है। परिवार जनों को तुरन्त ही अस्थियाँ भी प्राप्त हो जाती हैं।
अब निर्णय मृतक के परिवार पर है कि वे किस रीती से दाह-संस्कार करना चाहते हैं।
मेरी अपनी राय के अनुसार दोनों ही विधियाँ ठीक हैं क्योंकि प्रथम विधि आर्ष ग्रन्थों के अनुकूल है। दूसरी विधि भी ठीक है यदि बिजली चूल्हे (furnace) में डालने के पूर्व अर्थी के ऊपर पर्याप्त मात्र में घी और सामग्री मिलकर तथा जो-जो सुगन्धित वस्तुएँ वायु को प्रदूषित करने से रोकें, उनको भी डाल दी जाएँ। और वेद मन्त्रों के साथ दाह संस्कार होता है तो उसमें किसी को आपत्ति नहीं होगी।
Wednesday, July 23, 2014
Vedic Dharma वैदिक धर्म: क्या ईश्वर के दर्शन होते हैं?
जैसे आप समजते हैं वैसे नहीं अपितु यहां दर्शन का अर्थ है उसकी अनुभूति करना।
Tuesday, July 22, 2014
क्या ईश्वर के दर्शन होते हैं?
प्रश्न: क्या ईश्वर के दर्शन होते हैं?
उत्तर : अवश्य होते हैं पर वैसे नहीं जैसे आप इस समय सोच रहे हैं !
* ईश्वर स्वभाव से चेतन है और चेतन तत्त्व निराकार होता है इसलिए ईश्वर का दीदार, देखना या दर्शन करने का तात्पर्य होता है - उसकी सत्ता का ज्ञान होना, उसकी अनुभूति (feeling) होना! इसी feeling को दार्शनिक भाषा में 'ईश्वर साक्षात्कार' कहते हैं।
* "दृश्यन्ते ज्ञायन्ते याथातथ्यत आत्मपरमात्मनो बुद्धिन्द्रियादयोतिन्द्रियाः सूक्ष्मविषया येन तद दर्शनम् "||
अर्थात् जिससे आत्मा, परमात्मा, मन, बुद्धि, इन्द्रियों आदि सूक्ष्म विषयों का प्रत्यक्ष = ज्ञान होता है, उसको दर्शन कहते हैं। इसलिए कहते हैं कि ईश्वर को देखने के लिए ज्ञान-चक्षुओं की आवश्यकता होती है, चरम-चक्षुओं (भौतिक नेत्रों) की नहीं!।
* पदार्थ दो प्रकार के होते हैं - 1) जड़ और 2) चेतन। जड़ वास्तु ज्ञानरहित होती है और चेतन में ज्ञान होता है। प्रकृति तथा उससे बनी सृष्टि की प्रत्येक वास्तु जड़ होती है। परमात्मा और आत्मा दोनों चेतन हैं।
* चेतन (आत्मा) को ही चेतन (परमात्मा) की अनुभूति होती है। चेतनता अर्थात् ज्ञान।
* हमारे नेत्र जड़ होते है, देखने के साधन हैं और जो उनके द्वारा वस्तुओं को देखता है वह चेतन (जीवात्मा) होता है। जह वस्तुचेतन को नहीं देख सकती क्योंकि उसमें ज्ञान नहीं होता पर चेतन वास्तु (आत्मा और परमात्मा) जड़ और चेतन दोनों को देख सकती है।
* अतः ईश्वर का साक्षात्कार आत्मा ही कर सकता है शर्त यह है कि आत्मा और परमात्मा के बीच किसी भी प्रकार का मल, आवरण या विक्षेप न हो अर्थात् वह शुद्ध, पवित्र और निर्मल हो अर्थात् वह सुपात्र हो।
* ईश्वर की कृपा का पात्र (सुपात्र) बनाने के लिए मनुष्य को चाहिए कि वह अपने अमूल्य जीवान को वैदिक नियमों तथा आज्ञाओं के अनुसार बनाए, नियमित योगाभ्यास करे और अष्टांग योग के अनुसार समध्यावस्था को प्राप्त करे। समाध्यावास्था में ही ईश्वर के साक्षात्कार हो सकते हैं, अन्य कोई मार्ग नहीं है।
* इस स्थिति तक पहूँचने के लिए साधक को चाहिए कि वह सत्य का पालन करे और किसी भी परिस्थिति में असत्य का साथ न दे। जब तक जीवन में सत्य का आचरण नहीं होगा ईश्वर की प्राप्ति या उसके आनन्द का अनुभव (feeling) नामुमकिन है जिस की सब को सदा से तलाश रहती है।.......Madan Raheja
Saturday, July 5, 2014
मेरे कुछ अनसुलझे प्रश्न
कर्म बड़ा या मूर्ती पूजा?
क्या कोई निकम्मा व्यक्ति मूर्तिपूजा करे और उसकी मनोकामना पूरी होगी?
एक महेनती व्यक्ति मेहनत करके रोज़ी-रोटी कमाता है। दोनों में कौन अच्छा?
मेरे प्रश्न :
1) क्या शिर्डी के एक फ़कीर को जिस का नाम 'साईंबाबा' रखा गया है उसे भगवान् का दर्जा दिया जा सकता है?
2) क्या अयोध्या के राजा श्री रामचन्द्र भगवान् और द्वारिका के राजा श्री कृष्णचन्द्र भगवान् की मंदिरों में स्थापित मूर्तियों के पास में साईंबाबा की मूर्ती का रखा जाना उचित है?
3) क्या साईं बाबा की तुलना भगवान् से हो सकती है? यदि हाँ तो क्यों और कैसे? यदि नहीं तो आजकल ये अनर्थ कैसे?
4) शंकराचार्य का बयान कि 'साईंबाबा भगवान् नहीं है' कहाँ तक सही या ग़लत है?
5) साईं बाबा धार्मिक व्यक्ति थे या अधार्मिक और कैसे?
6) 'ऐश्वर्यस्य वीरस्य यशस्य श्रियः। ज्ञान वैराग्य्योश्चैव षष्णां भग इतीरणा'।।(विष्णु पुराण 6/5/74) के अनुसार जिस व्यक्ति में ऐश्वर्य, बल, यश, श्री (धन, सम्पदा), ज्ञान और वैराग्य - ये छः गुण विद्यमान होते हैं उनको 'भगवान्' की उपाधि से सुशोभित किया जाता है।
श्री राम और श्री कृष्ण जैसे महापुरुषों को तो भगवान् कह सकते हैं परन्तु एक फ़कीर (भिखारी) को भगवान् कहना भगवान् शब्द का अपमान करना है।
7) जो व्यक्ति माँसाहारी था तथा ...... और मस्जिद में रहता था उस व्यक्ति की तस्वीर को मंदिर में रखना और उसकी भगवान् की तरह पूजा करना कहाँ तक सही है? यह अज्ञानता की पराकाष्ठा नहीं है?
8) जिस व्यक्ति के मुँह से कभी 'राम' नहीं निकला उस व्यक्ति के नाम के साथ 'राम' का नाम जोड़ना (साईं राम) कहाँ की बुद्धिमात्ता है?
9) लोग निराकार ईश्वर के स्थान पर गढ़े मुर्दों/ मज़ारों/क़ब्रों की पूजा करते हैं अधार्मिक कार्य करते हैं। ये सब क्या हो रहा है?
10) कोई पंडित, आचार्य, गुरु, सद्गुरु, शंकराचार्य, साधू, संत, मौलाना, पादरी, ब्राह्मण या विद्वान् आदि धर्म के ठेकेदार हमें सही मर्ग्क्यों नहीं दिखाता? आपका अपना
.............http://vedicdharma.com
Friday, June 22, 2012
'बाल शंका समाधान' ....मदन रहेजा
क्या आप जानते हैं?
- ऐसे कितने पदार्थ हैं जो कभी पैदा नहीं होते? (ईश्वर, जीव और प्रकृति)
- वो कौन सी वस्तुएँ हैं जो कभी नष्ट नहीं होतीं? (ईश्वर, जीव और प्रकृति)
- संसार को कौन बनाता है? (संसार को ईश्वर बनाता है।)
- हम सब कौन हैं? (हम सब मनुष्य हैं - आत्माएँ हैं।)
- हम कहाँ रहते हैं? (हम इस संसार में रहते हैं।)
- यह सारा संसार किस में रहता है? (सारा संसार भगवान् में रहता है।)
- भगवान् कहाँ रहता है? (ईश्वर सब जगह, सब वस्तुओं के भतर-बाहर तथा सब के दिल में रहता है।)
- क्या मूर्ति में भी भगवान् रहता है? (हाँ, वह मूर्ति में भी रहता है।)
- क्या मूर्ति भगवान् है? (नहीं! मूर्ति भगवान् नहीं है।)
- क्या मूर्ति और भगवान् एक ही वस्तु है? (नहीं ! दोनों अलग-अलग वस्तुएँ हैं।
- मूर्ति में यदि ईश्वर रहता है तो वह हमें दिखाई क्यों नहीं देता? (क्योंकि हम मूर्ति के अन्दर नहीं रहते, हम मूर्ति के बाहर रहते हैं इसलिये वह हमें दिखाई नहीं देता। जहाँ हम रहते हैं ईश्वर वहाँ दिखता है।)
- हम तो यहाँ हैं फिर ईश्वर कहाँ रहता है? (वह हमारे अन्दर रहता है। हम आत्मा हैं, आत्मा में रहता है।)
- शरीर में आत्मा कहाँ रहता है? (हमारे शरीर में आत्मा, दोनों भृकुटियों के बीच में, आँखों के पीछे, अन्दर की ओर रहता है।)
- परमात्मा हमें कैसे दिखाई देता है? (आँख बन्द करके उसको याद करो तो उसका अनुभव अर्थात् दर्शन होने लगता है।
- भगवान् को हम किस नाम से पुकारें? (‘ओ३म्’ नाम से)
- परमात्मा कितने होते हैं? (ईश्वर एक होता है जिसका नाम –‘ओ३म्’ है।)
- क्या ईश्वर हमारी आवाज़ सुनता है? (वह सब की आवाज़ सुनता है, हमारे मन की आवाज़ भी सुनता है।)
- ईश्वर कौन सी भाषा समझता है? (वह सब की भाषा समझता है। हम अपने मन में जो भी सोचते हैं या मुँह से बोलते हैं, वह ईश्वर सब की सुनता है और सब समझता है।)
- ईश्वर हमारा कौन लगता है? (वह हमारा सबकुछ लगता है। ईश्वर हम सब का माता-पिता-मित्र-बन्धु लगता है। हम सब उस परमात्मा की सन्तान हैं। हम उसके के बच्चे हैं।)
- वह सारा समय क्या करता है? (परमात्मा हर समय हम सब की सहायता करता है। उसने हमारे लिये ही पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश बनाया है। उसने हमारे लिये सूर्य, चन्द्रमा, तारे बनाए हैं। वह पूरा संसार बनाकर उसकी देख-भाल करता है।)
- हमने भूत की कहानियाँ सुनी हैं, क्या भूत भी होते हैं? (नहीं ! भूत-वूत कुछ नहीं होते। अच्छे बच्चों को ऐसी कहानियाँ नहीं सुननी चाहियें।)
- मास्टर जी के कमरे में टी॰ वी॰ लगी है। वे स्वयं देखते हैं किन्तु हम को देखने से मना करते हैं, ऐसा क्यों? (क्योंकि टी॰ वी॰ देखने से छोटे बच्चों की आँखें ख़राब होती हैं। जब आप बड़े हो जाओगे तो समझ जाओगे।)
- हम बड़े कैसे होंगे? (रात को जल्दी सोना, सवेरे जल्दी उठना, पढ़ाई के मन लगाके पढ़ाई करना, खेल के समय ख़ूब खेलना और ठीक समय पर भोजन करना – फिर आप बड़े हो जाओगे।)
- हवन करने से क्या होता है? (हवन करने से वायु शुद्ध होती है, बुद्धि तेज़ होती है, आयु बढ़ती है और मनुष्य स्वस्थ रहता है और वह कभी बीमार नहीं पड़ता है।)
- क्या गाली देना बुरी बात होती है? (बहुत बुरी बात होती है। ईश्वर को भी अच्छा नहीं लगता इसलिये गाली देने से पाप लगता है। हमें कभी किसी को भी गाली नहीं देनी चाहिये। अच्छे बच्चे कभी किसी को गाली नहीं देते हैं।)
- यदि कोई हमें गाली दे तो हमें क्या करना चाहिये? (उसको समझाना चाहिये कि अच्छे बच्चे गाली नहीं देते, गाली देना बुरी बात है, इससे पाप लगता है।)
- पाप क्या होता है? (प्रत्येक बुरे काम को पाप कहते हैं। जैसे झूठ बोलना, किसी को बिना कारण के मारना, गाली देना आदि। पाप करने वाले को ईश्वर दु:ख देता है।)
- क्या चोरी करने से भी पाप लगता है? (बिना पूछे किसी की वस्तु उठाकर अपने काम में लाना ‘चोरी’ कहाती है। चोरी करना बहुत बड़ा पाप होता है।)
- यदि कोई वस्तु पूछकर लेंगे तो? (जिस की वस्तु है उससे पूछकर लेना अच्छी बात है। इससे कोई पाप नहीं लगता। अच्छे बच्चे किसी की वस्तु हो बिना पूछे कभी हाथ नहीं लगाते हैं।)
- क्या झूठ बोलना भी पाप होता है? (हाँ! झूठ बोलना सब से बड़ा पाप होता है, इससे भगवान् बहुत बड़ा दु:ख देते हैं।)
Tuesday, June 19, 2012
Vedic Dharma वैदिक धर्म: Ignorance
Saturday, November 27, 2010
Vedic Prayers for English Speaking Children
Tuesday, November 9, 2010
मूर्ति पूजा का सही अर्थ .....Madan Raheja
हम मनुष्य सर्वश्रेष्ठ प्राणी कहाए जाते हैं। ईश्वर ने हमें बुद्धि प्रदान की है। सोचें, विचारें, चिन्तन करें। अपने जीवित माता-पिता तथा परमात्मा की आज्ञाओं का पालन करें - यही पूजा है। ईश्वर सब को सद्बुद्धि प्रदान करें।
मेरी आगामी पुस्तक 'मूर्तिपूजा या ईश्वरोपासना' 2012 में प्रकाशित होने वाली है,उसे अवश्य पढ़ें। मदन रहेजा