मन, बुद्धि, चित्त और अहंकार के समुदाय को ‘अन्तःकरण’ कहते हैं जिसपर लगातार निम्नलिखित चौबीस प्रकार के प्रभाव पड़ते रहते हैं और उन का सीधा प्रभाव मनुष्य के व्यक्तित्व, स्वभाव एवं स्वास्थ पर पड़ता है।
पाँच विघ्न: दु:ख, दौर्मनस्य, अंगमेजयत्व, श्वास और प्रश्वास (योग:1/39)।
नौ विक्षेप: व्याधि, स्त्यान, संशय, प्रमाद, आलस्य, अवरति, भ्रान्तिदर्शन, अलब्ध-भूमिकत्व और अनवास्थितत्व।
पाँच क्लेश: अविद्या, अस्मिता, राग, द्वेष और अभिनिवेश (योग:2/3)।
पाँच वृत्तियाँ: प्रमाण, विपर्य, विकल्प, निद्रा और स्मृति (योग: 1/6)।
[सूचनार्थ: स्थानभय की दृष्टि से इन सब की विस्तृत जानकारी यहाँ लिखना कठिन है। ज्ञान द्वारा उपरोक्त प्रभावों से बचा जा सकता है। कैसे? इसको जानने के लिये हम अपने जिज्ञासु पाठकवृन्द से विनम्र विनती करते हैं कि वे महर्षि पतञ्जलिकृत ‘योग दर्शन’ का स्वध्याय करें।]
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