Monday, September 15, 2008

Generation Gap

Generation Gap

वर्तमान में माता-पिता की सब से बड़ी समस्‍या है “Generation Gap” अर्थात् ‘पीढ़ीयों की दूरी’ या ‘बच्‍चों और बड़ों के बीच आयु का अन्‍तर’ और उस के कारण एक दूसरे की बातों को न समझना, जिसके फलस्‍वरूप आपस में अनबन, खिटपिट, टकराव होना और दूरियाँ बढ़ना स्‍वाभाविक है, परिणाम घर में अशान्ति का वातावरण। यह समस्‍या हर परिवार में माँ-बाप और बच्‍चों के बीच पहले भी थी, आज भी है और कल भी रहेगी। यह घर-घर की कहानी है। जब से यह संसार बना है और परिवार बने हैं, तब से हर घर में आपसी अनबन, मत-भेद और अशान्ति रही है। इस का कोई हल न पहले था, न आज है और न कभी भविष्‍य में हो सकता है परन्‍तु निराश होने की बात नहीं है क्‍योंकि यह ‘पीढि़यों का अन्‍तर’ कहीं हद तक दूर किया जा सकता है। आइये समझें कैसे?
माता-पिता बच्‍चों की बातों पर ध्‍यान नहीं देते, समझते हैं कि वे अभी बच्‍चे हैं और उनका अच्‍छा-बुरा हम अधिक जानते हैं। वास्‍तव में आधुनिक पीढ़ी के बच्‍चे अनेक विषयों में हम से ज्‍़यादा जानते हैं और अनेक बातें ऐसी होती हैं जिन्‍हें हम अधिक जानते हैं अतः समाधान यही है कि हम अपने अहंकार को अलग रखें और अपना निर्णय सुनाने से पूर्व, अपने बच्‍चों की बातों को ध्‍यान से सुनें। यदि वे ग़लत हैं तो ऐसी परिस्थिति में उनसे मित्रता का व्‍यवहार करें और प्रेम पूर्वक समझाने का प्रयत्‍न करें। ज़ोर-ज़बरदस्‍ती करने से बच्‍चे आपकी बातों को नहीं मानते, इससे आपके अहंकार को ठेस पहँचती है और घर में अशान्ति का वातावरण उत्‍पन्‍न होने की सम्‍भावना होती है। अहंकार के कारण मनुष्‍य हठी (ज़ि‍द्दी) बन जाता है और दूसरे की बात को मानने से इन्‍कार करता है, अपनी बात पर ही अड़े रहते हैं – एक-दूसरे की बात नहीं मानते - चाहे वह बात सही ही क्‍यों न हो और यही घरेलू अशान्ति का कारण बन जाता है।
जब बच्‍चे पन्‍द्रह-सोलह वर्ष के हो जाएँ, सोचने-समझने लगें, अपना कार्य स्‍वयं करने लगें और निर्णय स्‍वयं करने लगें, तो उन्‍हें कभी भी नहीं डाटें अपितु उनसे एक सच्‍चे मित्र की भान्ति प्रेम से वार्तालाप करनी चाहिये और उन्‍हें सलाह देने का प्रयास करें। आदेश/आर्डर देने से बच्‍चे सुधरते नहीं हैं अपितु अधिक बिगड़ते हैं। बच्‍चों को ऐसा अहसास दिलाएँ कि आप उनका भला चाहते हैं।
इस मूल मन्‍त्र को सदा याद रखें - आप अपने बच्‍चों का मन रखें तो ही बच्‍चे आपका मान करेंगे। इससे बच्‍चों में आपके प्रति प्रेम और विश्‍वास जागृत होने लगता है और आपके कहे को टाल नहीं सकते। प्रेम से सब के मनों को जीता जा सकता है और प्रेम ही से संसार की हर समस्‍या का समाधान हो सकता है।
बच्‍चों में बचपन से ही संस्‍कार डालें तो वे बिगड़ते नहीं हैं, कभी सामने से उत्तर नहीं देते और यदि अन्‍य कारणों से बच्‍चे बिगड़ते हैं या आपका कहना नहीं मानते तो यही उचित है कि आप स्‍वयं को समय की तेज़ रफ़्तार के साथ चलने का प्रयास करें वरना समय आगे निकल जाएगा और आप पीछे रह जाएँगे।
माता-पिता अपने बच्‍चों से आयु में 20, 25 या 30 वर्ष बड़े होते हैं (आयु में और भी अधिक अन्‍तर हो सकता है) और जब हमारे बच्‍चे स्‍वयं 20/25 वर्ष के हो जाते हैं तो वे अपना अच्‍छा-बुरा स्‍वयं सोचने में सक्षम हो जाते हैं और आपके विचार-सिद्धान्‍त 20-25 वर्ष पुराने हो जाते हैं। ऐसी परिस्थिति में बच्‍चों के साथ समझौता करने तथा उनसे तित्रता का व्‍यवहार करने में ही समझदारी है। आपके बच्‍चे (पुत्र, पुत्री, बहू या दामाद) संस्‍कारी और योग्‍य हैं तो वे आपका उचित कहना अवश्य मानेंगे और सम्‍मान भी करेंगे बशर्ते आप अपना अधिकार समझकर उन्‍हें सीधा आदेश न करें।
दूसरी बात! कोई किसी के स्‍वभाव (पूर्व जन्‍म और माता-पिता के कुछ मिश्रित संस्‍कार) को बदल नहीं सकता। सब के स्‍वभाव भिन्‍न-भिन्‍न होते हैं अतः बच्‍चों पर बिना कारण के दबाव न डालें। कोई बच्‍चा शान्‍त स्‍वभाव का होता है तो कोई ज़ि‍द्दी। माता-पिता को चाहिये कि वे अपने बच्‍चों से खूब वार्तालाप किया करें, उनके मन की बातों का जानने का प्रयास करें और अपने मन की बातें भी करें ताकि बच्‍चों को यह एहसास हो कि आप क्‍या चाहते हैं।
तीसरी बात! विवाहित बच्‍चों को उनके जीवन के निर्णय स्‍वयें लेने दें (उनमें हस्‍तक्षेप न करें) और अपनी बहू के साथ सास-ससुर जैसे व्‍यवहार न करें अपितु उस को अपनी बेटी के जैसा बर्ताव करें। स्‍मरण रखें कि आपकी बहू भी किसी की बेटी है और बेटियों को कौन ख़ुशहाल देखना नहीं चाहता? याद रहे! यदि आपकी बेटी के साथ भी उसके ससुराल वाले ग़लत व्‍यवहार करें तो आप के दिल पर कैसे गुज़रेगी? अपनी बहू का आदर-सम्‍मान करेंए उसे हर सम्‍भव प्रसन्‍न रखें फिर देखिये कि आपकी बहू आपका कितना सम्‍मान करती है और आपकी हर बात मानती है और अपने पति को भी मनाती है।
एक और महत्‍वपूर्ण बात को सदा ध्‍यान में रखें कि अपने बच्‍चों (बेटे, बेटी, बहू और दामाद) के समक्ष कभी भी, भूल कर भी झूठ न बोलें या उनके साथ किसी प्रकार की Politics न खेलें। उनसे जो भी बात करें मधुर वाणी से और सत्‍य बोलें। आपके इन्‍हीं गुणों का प्रभाव आपके बच्‍चों पर अवश्‍यरूप से पड़ता है। उनसे कभी ऊँची आवाज़ में न बोलें।
रात्रि भोजन के पश्‍चात् अपने बच्‍चों से पूरे दिन का हालचाल (दिनचर्या) के बीरे में पूछें। हँसी-ख़ुशी के वातावरण में अपनी आप-बीती सुनाएँ तथा उनकी बातें सुनें, इससे आपसी विचारों का आदान-प्रदान होता है। आधुनिक बच्‍चे बड़े समझदार एवं चतुर होते हैं और कोई बच्‍चा अपने माता-पिता या सास-ससुर को दुःखी देखना नहीं चाहता।
अपने घर में सबसे मातृभाषा का ही प्रयाग किया करें, यह हमारे संस्‍कृति और सभ्‍यता की पहचान है और इससे उसकी रक्षा होती है। मातृभाषा के पश्‍चात् राष्‍ट्रीय भाषा का ज्ञान होना आवश्‍यक है। वैसे भी बच्‍चे विद्यालयों में अन्‍ग्रेज़ी भाषा सीखते ही हैं जो विदेशी लोगों के साथ बात-चीत करने में उपयोगी होती है। हमने देखा है कि हमारे भारतीय मूल के लोग अपने घरों में अन्‍ग्रेज़ी भाषा का प्रयोग करते हैं और उसमें अपनी शान समझते हैं - जो एक ग़लत परम्‍परा है।
मैंने अनेक बार विदेश-यात्रा की है और यह मेरा दावा है कि जब भी कोई चीनी/रश्यिन/स्‍पैनशि/मैक्‍सीकन इत्‍यादि लोग आपस में मिलते हैं तो अपनी मात्रृभाषा में ही बात करते हैं और कभी भी उन्‍हें अन्‍ग्रेज़ी भाषा में बात करते हुए नहीं देखा है। क्‍या आपने विदेशी मूल के लोगों को उनके घरों में या उनके मित्रों के साथ ‘हिन्‍दी’ में बात-चीत करते हुए कभी देखा या सुना है? नहीं, तो हम क्‍यों अपने घरों में विदेशी भाषा बोलें? इससे यही मालूम पड़ता है कि वे लोग अपनी मात्रृभाषा को कितना मान देते हैं और हम हैं कि हमें अपने ही घरों में अपनी भाषा बोलने में शर्म आती है। हम कितनी भी विदेशियों की नकल करें, उनकी बोली बोलें, उनके लहजे (उनके ढंग) में बात करें, उनके जैसे कपड़े पहनें, उनकी स्‍टाईल मारें या उनके जैसा खाना खाएँ – फिर भी हम कभी भी उनके जैसा नहीं बन सकते, क्‍यों के हमारी शक्‍ल-सूरत, रंग-रूप जैसा है वैसी ही रहेगा। मुखौटा पहनने से कोई वैसी नहीं हो जाता। याद रहे, हमें जितना मान-सम्‍मान अपने समाज और अपनी संस्‍कृति से मिल सकता है और कहीं से नहीं मिल सकता अतः समझदारी इसी में है कि हमें अपनी भारतीय संस्‍कृति और सभ्‍यता पर गर्व करना चाहिये।
विदेश में रहने वाले भारतीयों को चाहिये कि वे अपने घरों में बच्‍चों के साथ अपनी मात्रृभाषा में बोलें। हमें हर देश की भाषा का सम्‍मान करना चाहिये जैसे अपनी मात्भाषा का करते हैं। अन्‍ग्रेज़ी भाषा का प्रयोग उन लोगों से करें जो हमारे देश की भाषा नहीं जानते। हम अपने ही हाथों से अपने घरों को स्‍वर्ग या नरक बनाए जा रहे हैं। हमें क्‍या चाहिये . स्‍वयं निर्णय करें!
'कृण्‍वन्‍तो विश्‍वमार्यम्' का यही नियम है कि 'पहले स्‍वयं आर्य बनें फिर औरों को आर्य बनाएँ', परन्‍तु वर्तमान की यह विडम्‍बना है कि सब दूसरों को ही सुधारना चाहते हैं, स्‍वयं के आचरण पर काई ध्‍यान नहीं देता।
उपरोक्‍त बातों को व्‍यवहार में लाएँ फिर देखें के अपन के परिवार में आपका और आपके परिवार में आप ही के बच्‍चे आपका कैसा सम्‍मान होता है, घर में शान्ति होती है और आप का घर स्‍वर्ग बन जाता है। ‘जिस घर में एक-दूजे की बात जाए मानी। उस घर में कभी न होवे कोई भी परेशानी’।।

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