Tuesday, November 9, 2010

मूर्ति पूजा का सही अर्थ .....Madan Raheja

प्राय: लोग पूजा का अर्थ नहीं जानते क्‍यों कि वे ऐसा समझते हैं कि किसी भी देवी-देवता की काल्‍पनिक मूर्ति के सामने  हाथ जोड़ने से ईश्‍वर की पूजा पूर्ण हो जाती है। वास्‍तव में ऐसा करने से कोई लाभ नहीं होता। हमें सब से पहले मूर्ति-पूजा का सही अर्थ समझना होगा। मिट्टी या पत्‍थर की बनी  मूर्ति वास्‍तव में निराकार परमात्‍मा की मूर्ति नहीं होती क्‍यों कि ईश्‍वर निराकार है, आँखों से दिखाई देने वाली वस्‍तु नहीं है। पूजा का अर्थ होता है - आज्ञा का पालन करना, आदर-सत्‍कार करना, अपने कर्तव्‍यों का ठीक-ठीक पालन करना इत्‍यादि। पत्‍थ्‍र न तो सुन सकते हैं, न ही बोल सकते हें, न खाते हैं और न ही पी सकते हैं क्‍यों कि पत्‍थर की मूर्ति जड़ होती है।  जीवित माता-पिता, बड़े-बुज़ुर्ग, विद्वान गुरु इत्‍यादि साकार मूर्तिमान देवता होते हैं, आप की बातें सुन सकते हैं, आपको सलाह दे सकते हैं, शिक्षा प्रदान कर सकते हैं अत: उनकी आज्ञाओं का पालन करना उनकी पूजा कहाती है। ईश्‍वर की पूजा का अर्थ होता है परमात्‍मा के गुणों को तथा ईश्‍वरीय वाणी "वेद" में कही बातों को अपने जीवन में धारण करना, आज्ञाओं का पालन करना। यदि हम ऐसा करते हैं तो हमें किसी पत्‍थर के समक्ष हाथ जोड़ने या फूल चढ़ाने या दीपक जलाने की कोई आवश्‍यकता नहीं है। निाराकार परमात्‍मा के स्‍थान पर जड़ वस्‍तु की पूजा करना ईश्‍वर का अपमान है, उसका निरादर करना है। 
हम मनुष्‍य सर्वश्रेष्ठ प्राणी कहाए जाते हैं। ईश्‍वर ने हमें बुद्धि प्रदान की है। सोचें, विचारें, चिन्‍तन करें। अपने जीवित माता-पिता तथा परमात्‍मा की आज्ञाओं का पालन करें - यही पूजा है। ईश्‍वर सब को सद्बुद्धि प्रदान करें। 
मेरी आगामी पुस्‍तक 'मूर्तिपूजा या ईश्‍वरोपासना' 2012 में प्रकाशित होने वाली है,उसे अवश्‍य पढ़ें। मदन रहेजा

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