Wednesday, August 6, 2014

धर्म के प्रकार

धर्म के प्रकार  :
* धर्म की परिभाषा अनेक प्रकार से होती है। मनुष्य मात्र के लिए धर्म एक होता है जिसका नाम है - मानवता! 'धारयति इति धर्म' अर्थात् 'जो धारण किया जाता है'। जो-जो गुण, कर्म और स्वभाव मनुष्य को मनुष्य बनाने के लिए उचित होते हैं' उनको धारण करने को धर्म की संज्ञा दी गयी है।
** अलग-अलग वस्तुओं तथा जीवों (शरीर धारियों) के लिए धर्म की परिभाषा बदल सकती है। जैसे गर्मी को अग्नि से धारण किया जाता है तो गर्मी अग्नि का धर्म है। उसी प्रकार जल का धर्म है - तरलता, कोमलता, शीतलता आदि देना। बिच्छू, सांप, ज़हरीले जीव काटते हैं, गाय घास खाकर भी दूध देती है, शेर शिकार करके माँस खाता है, वृक्ष फल-फूल देते हैं, लकड़ी जलकर कोयला बनती है....आदि। प्रत्येक धातु के अलग-अलग गुण, कर्म स्वभाव होते हैं अतः वे सब उन के धर्म कहाते हैं।
*** ईश्वर, जीव और प्रकृति के भी धर्म अलग-अलग होते हैं।
**** प्रत्येक वास्तु अपने-अपने गुण, कर्म और स्वभाव के कारण ही जानी जाती है।
***** ईश्वर सच्चिदानन्दस्वरूप है, जीव सत्य और चेतन है तथा प्रकृति सत्य है। ये उनके धर्म हैं।
****** सबका धर्म एक है - ऐसा कहना ठीक नही है। सब मनुष्यों का धर्म एक है - ऐसा कहना ठीक है।

अन्त्येष्टि संस्कार

जिज्ञासा : मृत शरीर का अन्तिम संस्कार श्मशान में पुरानी विधि-विधान से अग्नि में करना चाहिए या आधुनिक बिजली-भट्टी में करना चाहिए?

समाधान : आर्ष ग्रन्थों के आधार पर मृत शरीर का अन्तिम संस्कार (दाह संस्कार) श्मशान भूमि में अग्नि में होना चाहिए।
ज़माना बदल रहा है। नई तकनीक और सुविधाएँ उपलब्ध हो रही हैं। श्मशान में आधुनिक बिजली की भट्टियाँ जोड़ी गयी हैं ताकि थोड़े समय में शरीर का दाह संस्कार सम्पन्न हो सके। अब देखना है कि दोनों विधियों में कौन सी विधि बेहत्तर है?
1) पहली विधि में लकड़ियाँ, सामग्री, शुद्ध घी तथा अन्य सुगन्धित पदार्थों की आवश्यकता पड़ती है तथा अन्त्येष्टि संस्कार में बहुत अधिक समय लगता है। लगभग दो घण्टे लगते हैं।
2) आधुनिक बिजली-भट्टी की विधि में न लकड़ियों की आवश्यकता नहीं पड़ती और न ही अन्य वस्तुओं की। समय की दृष्टि से भी समय की बहुत बचत होती है। आधे घण्टे के भीतर ही क्रिया-कर्म सम्पन्न हो जाता है।
अन्त्येष्टि का मुख्य काम है - पार्थिव शरीर को भस्म करना अर्थात् वह वायु मण्डल को दूषित किये बिना अग्नि में जलकर पञ्च महाभूतों में पूरी तरह से विलीन हो जाए।
अब विचारणीय बात है कि मृत्यु को प्राप्त पाषण शरीर Electric Furnace में जले या लकड़ी में भस्म हो जाए, दोनों में शरीर को कोई फ़र्क नहीं पड़ता परन्तु सामाजिक तथा धार्मिक दृष्टि से सोचें तो दोनों विधियों में परिवार के कुछ सदस्यों को आपत्ति हो सकती है।
मैंने दोनों विधियाँ देखी हैं। उनमें मैंने एक अन्तर देखा है।
1 - वैदिक अन्त्येष्टि विधि में पंडितों द्वारा लगभग 101 मन्त्रों के उच्चारण से दाह संस्कार सम्पन्न होता है और शरीर को भस्म होने में काफ़ी समय लगता है। परिवार-जनों को अस्थियाँ दूसरे दिन ही मिलती हैं।
2 - वहीं दूसरी आधुनिक electric श्मशान में पौराणिक विधि से कुछ मन्त्रों के साथ पाँच-आठ मिनिटों में ही सब क्रिया-कर्म समाप्त होता है और आधे घण्टे के भीतर ही शरीर पूर्णरूपेण भस्म हो जाता है। परिवार जनों को तुरन्त ही अस्थियाँ भी प्राप्त हो जाती हैं।
अब निर्णय मृतक के परिवार पर है कि वे किस रीती से दाह-संस्कार करना चाहते हैं।
मेरी अपनी राय के अनुसार दोनों ही विधियाँ ठीक हैं क्योंकि प्रथम विधि आर्ष ग्रन्थों के अनुकूल है। दूसरी विधि भी ठीक है यदि बिजली चूल्हे (furnace) में डालने के पूर्व अर्थी के ऊपर पर्याप्त मात्र में घी और सामग्री  मिलकर तथा जो-जो सुगन्धित वस्तुएँ वायु को प्रदूषित करने से रोकें, उनको भी डाल दी जाएँ। और वेद मन्त्रों के साथ दाह संस्कार होता है तो उसमें किसी को आपत्ति नहीं होगी।