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Tuesday, September 16, 2008

क्‍या ईश्वर है या केवल हमारी सोच है?

आपकी इस शंका में ही उसका समाधान छुपा है जो बता रहा है कि ‘ईश्वर’ नाम की कोई वस्‍तु है अन्‍यथा आप इस प्रकार की शंका नहीं करते! जो शब्‍द बना है उसका अर्थ अवश्‍य होता है अतः ईश्‍वर का अस्तित्‍व है इसलिये तो ‘ईश्‍वर’ शब्‍द बना है।
ज़रा विचारिये – इतने विशाल ब्रह्माण्‍ड को किस ने बनाया है? इस पृथ्‍वी को किसने बनाया है? पृथ्‍वी का परिमाण – उसकी गोलाई, वज़न, वायु का मिश्रण, सूर्य से दूरी इत्‍यादि ठीक मात्रा में किस ने बनाई है? यदि हमारी पृथ्‍वी वर्तमान स्थिति में न होकर सूर्य से कुछ और पास या दूर होती तो धरती पर जन-जीवन का अस्तित्‍व असम्‍भव होता! हमारी पृथ्‍वी अपनी धुरी में घूमते हुए, सूर्य का चक्‍कर, एक घंटे में लगभग 67000 मील की रफ़्तार से लगाती है तथा ग्रह-उपग्रह, चन्‍द्रमा, सूर्य, तारे, आकाश गंगाएँ इत्‍यादि को गति कौन दे रहा है? यह नियम किस ने बनाये हैं?
जल को ही लीजिये – इसका कोई रंग, स्‍वाद या गन्‍ध नहीं है फिर इसके बिना कोई जीव जीवित नहीं रह सकता। ‘जल है तो जीवन है’। वन-वनस्‍पति जगत् की रचना कौन करता है? माता के गर्भ में बच्‍चे का निर्माण तथा परवरिश कौन करता है? पृथ्‍वी, जल, वायु तथा अन्‍तरिक्ष में स्थित असंख्‍य लोक-लोकान्‍तरों में बसने वाले असंख्‍य प्राणियों को कौन उत्‍पन्‍न करता है और उनकी देख-भाल करता है? प्रकृति के नियमों का रचयिता कौन है? ऐसे अनेक प्रश्‍न हैं जिनका उत्तर हम मनुष्‍य होकर भी नहीं दे सकते। हम में से काई ऐसा नहीं है जो कह सके कि यह सब हमने बनाया है। फिर वही प्रश्न आख़ि‍र यह सब किसने बनाया है?
इतना अवश्‍य कह सकते हैं कि कोई तो है (निराकार चेतन तत्त्‍व) जो सब का निर्माण करता है। जिसको हम देख नहीं सकते, समझ नहीं सकते परन्‍तु इतना तो अवश्‍य कह सकते हैं कि वह सब हम सब से अधिक ज्ञानी, शक्तिशाली और महान है। वह सब रचना चुप-चाप, छुपकर, बिना किसी को बताए करता है और किसी को कुछ भी मालूम नहीं पड़ता। हम उस चेतन, निराकार, सर्वशक्तिमान, सर्वज्ञ और सर्वव्‍यापी तत्त्‍व/वस्‍तु/चीज़ को "ईश्‍वर" के नाम से पुकारते हैं। कोई उसे ‘ईश्वर’ कहता है तो कोई उस को ‘परमात्‍मा’ कहता है। संसार में विभिन्‍न विचारों वाले, अलग-अलग मत-मतान्‍तर वाले, भिन्‍न-भिन्‍न मान्‍यता और मज़हब वाले लोग उसे अपनी-अपनी भाषा में अलग-अलग अनेक नामों से पुकारते हैं। वेद में उस परम तत्त्‍व को "ओ३म्" के नाम से सम्‍बोधित किया है क्‍योंकि "ओ३म्" नाम में उस परम पिता परमात्‍मा (ईश्‍वर) के सभी कार्मिक, गौणिक तथा अलंकारिक इत्‍यादि नामों का समावेश हो जाता है।
‘ईश्वर’ एक अद्वितीय, नित्‍य, चेतन तत्त्‍व (वस्‍तु) को कहते हैं जो इस जगत् का निमित्त कारण है और सब का आधार है। वह सकल जगत् का उत्‍पतिकर्त्ता, समग्र ऐश्‍वर्ययुक्‍त, शुद्धस्‍वरूप, सब सुखों के दाता है। ईश्‍वर सच्चिदानन्‍दस्‍वरूप, निराकार, सर्वशक्‍ितमान, न्‍यायकारी, दयालू, अजन्‍मा, अनन्‍त, निर्विकार, अनादि, अनुपम, सर्वाधार, सर्वेश्‍वर, सर्वव्‍यापक, सर्वान्‍तर्यामी, अजर, अमर, अभय, नित्‍य पवित्र और सृष्टिकर्त्ता हैं। वह निर्लेप, सर्वज्ञ तथा शुद्ध-बुद्ध-मुक्‍त स्‍वभाववाला है। हम जितनी भी कल्‍पना कर सकते हैं, परमात्‍मा उससे कहीं अधिक शक्तिशाली है। असंख्‍य सृष्टियाँ तथा आत्‍माएँ परमात्‍मा के भीतर रहती हैं और परमात्‍मा स्‍वयं इन सब में विराजमान होता है। ब्रह्माण्‍ड में ऐसा कोई स्‍थान रिक्‍त नहीं है जहाँ ईश्वर की सत्ता विद्यमान न हो अर्थात् वह सृष्टि के प्रत्‍येक वस्‍तु में, प्रत्‍येक कण-कण में समाया हुआ है और साक्षी बनकर सब के भीतर रहता है।
‘ईशा वास्‍य इदं सर्वम्’ (यजुर्वेद: 10/1) अर्थात् ईश्वर इस ब्रह्माण्‍ड के प्रत्‍येक वस्‍तु के कण-कण में विद्यमान है – वह सब वस्‍तुओं के भीतर-बाहर ओत-प्रोत रहता है।
‘जन्‍माद्यस्‍य यतः’ (वैशेषिक दर्शन: 1/1/2) अर्थात् जिससे इस संसार की उत्‍पति, स्थिति और प्रलय होती है उस चेतन का नाम ईश्वर है।
क्‍लेशकर्मविपाकाशयैरपरामृष्‍टः पुरुषविशेष ईश्‍वरः’ (योग दर्शन: 1/24) अर्थात् जो अविद्या, क्‍लेश, कुशल-अकुशल, इष्‍ट-अनिष्‍ट और मिश्र फलदायक कर्मों की वासना से रहित है, वह सब जीवों से विशेष ‘ईश्वर’ कहाता है।